भारत ही नहीं पूरी दुनिया परेशान है नकली दवाओं से

भारत ही नहीं पूरी दुनिया परेशान है नकली दवाओं से

सेहतराग टीम

अकसर हम इस तरह की खबरें पढ़ते और सुनते रहते हैं कि भारत में धड़ल्‍ले से नकली या खराब गुणवत्‍ता की दवाएं बिकती हैं। बिहार और उत्‍तर प्रदेश के कई इलाके तो नकली दवाओं के उत्‍पादन और बिक्री के गढ़ में तब्‍दील हो गए हैं। इसका खामियाजा सीधे तौर पर मरीजों को भुगतना पड़ता है। नकली दवाओं के खिलाफ समय समय पर सरकारें मोर्चा खोलती हैं मगर ये प्रयास नाकाफी साबित होते आए हैं।

अब ये सच्‍चाई सामने आ रही है कि सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के तकरीबन सभी विकासशील देश नकली और खराब गुणवत्‍ता की दवाइयों के गढ़ बनते जा रहे हैं जहां ऐसी दवाएं धड़ल्‍ले से इस्‍तेमाल हो रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारी सहित दूसरी बीमारियों की नकली और खराब गुणवत्ता वाली दवाएं विकासशील देशों में जमकर इस्तेमाल की जा रही हैं। 

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने साथ ही कहा कि कम एवं मध्यम आय वाले देशों से नमूने के तौर पर ली गयी दवाओं में से 13 प्रतिशत दवाएं खराब गुणवत्ता की थीं। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना (यूएनसी) के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में पता चला कि अफ्रीका में इस्तेमाल में लायी जा रही 19 प्रतिशत जरूरी दवाएं नकली या खराब गुणवत्ता की थीं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि कम और मध्यम आय वाले देशों में 19 प्रतिशत मलेरिया रोधी और 12 प्रतिशत एंटीबॉयोटिक दवाएं नकली या खराब गुणवत्ता की थीं। यूएनसी में सहायक प्रोफेसर साचिको ओजावा ने कहा, ‘खराब गुणवत्ता वाली या नकली दवाओं का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल एक गंभीर जनस्वास्थ्य समस्या है क्योंकि ये दवाएं अप्रभावी या नुकसानदेह हो सकती हैं और बीमारी को लंबे समय के लिए खींच सकती है, विषाक्तता को जन्म दे सकती है या शरीर पर खतरनाक नकारात्मक असर डाल सकती हैं।’

यूएनसी के प्रोफेसर जेम्स हेरिंगटन ने कहा, ‘हमें दवाओं की गुणवत्ता को लेकर कानून लागू करने, गुणवत्ता नियंत्रण क्षमता बढ़ाने और निगरानी एवं डेटा साझा संबंधी सुधार की जरूरत है।’

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